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न दो कुंती की पीड़ा !

कितनी ही
कुन्तियाँ देती हैं छोड़;
कर्णों को
जीवन के अस्तित्त्व से ,
करने को संघर्ष !

कर्ण के 
जन्म का है 
अबोध अपराध ;
या कुंती की 
कोई अक्षम्य भूल!

समाज के 
निष्ठुर नियम 
और न जाने कितने ही 
महाभारतों को देंगें जन्म !

क्या समाज 
नहीं कर सकता ;
स्वयं की त्रुटि का 
प्रायश्चित व प्रतिकार !

अब बचा लो 
कुंती को 
अभिशापित 
होने से, और 
किसी माँ को 
 न दो कुंती की पीड़ा !


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