शायक !
तुमने तो जीने का ढंग,
ढूढ़ लिया शब्दों में !
मगर
आम आदमी का
यूं साँस लेना मुनासिब नहीं ;
यही शब्द,
जो तुम्हें जीवन देते हैं;
उसके लिए भ्रम जाल से कम नहीं !
शायद
यही अंतर है आम आदमी
और शायक के शब्द अभिव्यक्ति में !
जीवन
बन जाता है सरल और दुस्तर
इन्हीं अर्थों की बीथिका में उलझकर !
शब्दों के
अर्थ को पा लेना फिर
उन्हें अंगीकार करना ही सार्थक
बनाता है शायक का स्पस्ट प्रयोग !
जीवन
जवाब देंहटाएंबन जाता है सरल और दुस्तर
इन्हीं अर्थों की बीथिका में उलझकर!........
उलझ गई मैं.....
मुझे समझने में वक्त लगेगा इस कविता को