जिन्दगी तपती रेत है,
तुम नदिया की शीतल धारा !
रात चांदनी थी चुभती,
अब चंदा भी लगता है प्यारा !
जिन्दगी तपती रेत है,
तुम नदिया की शीतल धारा !
तुम आये मेरे आंगन में,
जैसे सिमट आया हो जग सारा !
जिन्दगी तपती रेत है,
तुम नदिया की शीतल धारा !
तोड़ के बंधन न जाओ,
सिवा तुम्हारे कौन हमारा !
जिन्दगी तपती रेत है,
तुम नदिया की शीतल धारा !
मिलना तो सपना ही था,
बिखरी सांसों का हो सहारा !
जिन्दगी तपती रेत है,
तुम नदिया की शीतल धारा !
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
प्रियतम के लिये आप के ये सुन्दर भाव मनमोहक हैं
जवाब देंहटाएंआभार