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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आसान नहीं होता हम हो जाना

मुझे मालूम है नहीं फर्क पड़ता तुम्हें मैं तुम्हारे साथ हूं या कि गुजर गया हूं इस जमाने से। अक्सर तुम मुझे मिल जाती हो मेरी नींदों के ख्वाबों में, क्या करूं मैं तन्हा रह कर भी तन्हा नहीं रह पाता हूं, तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षण मुझे अकेला रहने ही नहीं देते। तुम्हें आदत हो गई होगी अकेले रहने की क्योंकि तुमने कभी अपने आप को हम होने ही नहीं दिया। शायद हम होने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती, हम होने के लिए मैं के वजूद को मिटाना पड़ता है। जैसे कि तुम जी रहे हो मुझ में और मैं जी रहा हूं तुम में।

नीली धरती हो रही है फिर से लाल

पहाड़ों पर रखा सूरज, या फुनगी पर लटका चांद, न जाने क्यों लगता है उदास, शायद अब चिड़ियों की चहचाहट और नदियों  का कलरव बंद हो गया है। अब रातों में नहीं जगमगाता है तारों का शामियाना, अब तो बस आधुनिकता के धुए ने ढक रखा है पूरा आसमान। शायद अब बचे रहेंगे केवल दो ही रंग काला और लाल। कई वर्षों से नहीं दिखा है इंद्रधनुष, अब यह नीली धरती हो रही है फिर से लाल ।।