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फ़रवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सनकी शासक

 सत्ता की सनक,  या सनकी शासक; बिन पेंदी  लोटा या बिन प्रेस प्रकाशक।  कभी राज्य कभी प्रांत, बदल कर नाम; बन जाता है हर काम। हवा को वायु, वय को आयु; कहने से क्या, मृत्यु टल जाएगी? बेघर को घर और भूखे को रोटी मिल जाएगी। जनता का 'कर' पूँजीपति के कर में देकर, देखो कैसे चलती है सरकार। नाम है सरकार का, काम है व्यभिचार का; लूट खाएं मिलकर ठेकेदार।  काम वाले सब खाली, घर बैठ बजाएं ताली। भुखमरी,बीमारी  सब है बरकरार।  नवयुवक भटक रहा राहों में, जनता मर रही कराहों में; देख रहे हैं बनकर लाचार।

गुजारिश

मोहब्बतें दिलों में इस कदर पलें,     बाप की अंगुली थाम बचपन चले।   क्या गम है कि पास में दो निवाले,   रोटी दो जून की सबको ही मिले।     करे न कोई किसी पे जुल्मो-सितम, चरागे -नफरत न अब दिल में जलें। कुछ न मिलेगा मजहबी रंजिशों से, सभी कौम चैनो -अमन से रहलें।   सुपुर्द-ए -खाक होना है एक दिन, दुनियादारी में क्यों किसी को छले।    

ये हवा, ये जंगल, ये पानी

ये हवा, ये जंगल, ये पानी हुए बीते दिनों की कहानी।  दौलत का तू साहूकार है,  ये दौलत तो है आनी-जानी। नदी, जंगल और पहाड़,  इनसे न कर मन- मानी   कल की नस्लों के लिए सोच, कैसे कटेगी वो जिंदगानी। ढा लिए कई सितम तूने, अब नहीं चलेगी जो ठानी।

हां, मैं तुम्हारे प्रेम में हूं

 हां, मैं तुम्हारे प्रेम में हूं! तुम्हारे हांथ से गूंधे हुए  आंटें में सना हुआ प्रेम, या कमीज़ में टंकी हुई बटन सा  बंधा हुआ प्रेम, सुबह - सुबह झाड़ू की बुहार के साथ उड़ता हुआ प्रेम या फिर उड़द की दालके कंकड़ सा किरकिरा प्रेम। हर एक उधड़ते हुए रिश्ते की तुरपन करता हुआ प्रेम  या मुहल्ले की काकी- ताई  से हसी - ठठ्ठा करती मीठी तीखी बतियों का प्रेम।   बच्चों के माथे पर  काले टीके और  गालों पर दी गई पुचकारियों का प्रेम , रोज बिस्तर की बदली चादर  पर बिछा हुआ प्रेम  या सिरहाने की जगह पर तुम्हारी गोद में रखे मेरे सर पर तुम्हारे मखमली हाथों का प्रेम। तुम हो तो ये सब है और  इन सब के होने से ही प्रेम है, हां, मैं तुम्हारे प्रेम में हूं।

चैन -ओ-अमन का गुलिस्तां वो, सहरा में भी सजाए हुए हैं।

 उनके दीदार -ए- निस्बत में,   कब से राहें बिछाए हुए हैं।     इश्क का असरार तो देखिये ,   उजलत में सब भुलाये हुए हैं।   है अभी गुफ्तगू की गुंजाइश,     हम भी उम्मीद लगाए हुए हैं।   तीरगी फैली है जहाँ में , तब से चराग जलाए हुए हैं। चैन -ओ-अमन का गुलिस्तां वो, सहरा में भी सजाए हुए हैं।

पुरुष सत्ता

 पुरुष मन में भी  होता है स्त्री का कोना, और एक स्त्री  भी होती है पूरा पुरुष।  पहली बार  पुरुष ने जब देखा था, स्त्री के भीतर का पुरुष।  शायद तभी से उसने पृथक कर ली अपनी सत्ता और शुरू कर दी स्त्री-पुरुष में अंतर करने की मुहिम ।