आज तुम्हारा चित्र हाथ में क्या आया गुजरा कल फिर से यादों में जीवन्त हो उठा। तुम्हारे साथ बिताए हुए हर लम्हे, तुम्हारी बात बात पर बेबात की मुस्कुराहट और हमारे न बिछड़ने के वादे। अच्छा, ये बताओ क्या मैं तुम्हें तनिक भी नहीं याद आता हूँ, फिर मुझे भूख से पहले और मेरी मामूली सी बीमारी में हिचकियाँ क्यों आती हैं। अच्छा सुनो एक बार अपने मन ही मन वे शब्द कह दो जिससे जीवन की गति मंथर न हो। मेरी सांसों को उन शब्दों का इन्तजार अब भी है। मालूम है बहुत विवश हो, तुम्हारी विवशता मैं समझता हूँ पर दिल को कैसे दिलासा दूँ, वह तो तुम्हें ही सुनने और महसूसने की जिद किये बैठा है।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !