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कीमत

तुम आ गए हो तो रौनक आ गई है गरीबखाने  में वगरना कोई कब्रिस्तां में जश्न मनाता है क्या। एक इश्क ही तो है जिसमें लोग लुट जाते हैं, यूं ही मुफ्त में कोई वजूद अपना मिटाता है क्या। जो तुम कुछ दे देते हो एक दुआ के खातिर, वह फकीर कभी अपना एहसान जताता है क्या। मुनासिब है कि पी जाएं मयखाने को एक प्याले में डालकर, कब कौन कीमत कोई साकी की लगाता है क्या। तुम आ गए हो तो रौनक आ गई है गरीबखाने  में वगरना कोई कब्रिस्तां में जश्न मनाता है क्या।

मेरे हाकिम यह तो बता तेरा पयाम क्या है

मेरे हाकिम यह तो बता तेरा पयाम क्या है, अवाम की नजरों में  तेरा आयाम क्या है। चंद टुकड़ों खातिर देश को ही बेच दिया, ये गद्दारी नहीं तो फिर नमक हराम क्या है। फरामोशियां दिखती हैं तेरे अहसानों में, मुखालिफों के वास्ते एहतराम क्या है। बहुत सारे ख्वाब हैं इन आंखों की पलकों पर, अब ये तुम्हारी नई सुबह क्या, शाम क्या है। मिट जाएगी यह शोहरत तेरी पल भर में, बता फिर जन्नत के खातिर इंतज़ाम क्या है।

इस शहर में हर शख्स बिमार दिखता है

इस शहर में हर शख्स बिमार दिखता है, तेरी शक्ल में परवरदिगार दिखता है। कितना फरेब है दिलों में लोगों के, हर चौराहे पर बाजार दिखता है। क्या मासूमियत है इनके चेहरों पर, मुझको तो बख्तर में हथियार दिखता है। खड़ा वो शख्स जो दुश्मनों के साथ है, हमदम मेरा जिगरी यार दिखता है। वो शख्स जुबां मजहबी बोल रहा है, हमको तो सियासत दार दिखता है।

तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक

तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक। तुम क्या मुकम्मल करोगे मसलों को, तुम्हें ही तुम्हारा जवाब मुबारक। हो सकते थे और बेहतर हालात, रख लो, तुम्हें तुम्हारा हिसाब मुबारक । सूरत बदलने से नहीं बदलती सीरत, तुमको ये तुम्हारा नया हिजाब मुबारक। खुद ही खुद तुम खुदा बन बैठे हो तुम्हें यह तुम्हारा खिताब मुबारक। तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक।

अपना हिसाब फरेबी लिखते हैं

ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं। ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं । हर शाम सौदा होता है इमानदारी का,  हर शाम जमीर यहां पर बिकते हैं । कुछ एक हैं इस बाजार में अब भी, जो अपना हिसाब फरेबी लिखते हैं। लोग बड़े ही शातिर है लेन-देन में, काली नीयत उजला लिबास रखते हैं। होशियार रहना देश के इन गद्दारों से, नेता जो कुछ कुछ शरीफ दिखते हैं। ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं। ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं ।

जब से वो मेरे साथ सरेआम हो गया है

जब से वो मेरे साथ सरेआम हो गया है, इस शहर में वो भी बदनाम हो गया है।। लोग यूं ही नहीं उठाते हैं अंगुलियां मुझ पर शहर के रईसों में मेरा भी नाम हो गया है। जलते हैं तो जलने दो, ये जमाने वाले हैं; इनका तो जलते रहना ही काम हो गया है। जरायम पेशा जब से हुए सफ़ेदपोश, लुच्चे लफंगों का जीना हराम हो गया है। जो था कभी रिंद के लबों का लफ्ते जिगर, महफिल का टूटा हुआ जाम हो गया है। जब से वो मेरे साथ सरेआम हो गया है, इस शहर में वो भी बदनाम हो गया है।।

बड़े बड़े करते हैं मुजरा जिंदगी की थाप पर

बड़े बड़े करते हैं मुजरा जिंदगी की थाप पर, गुजरते ही लोग रख देंगे तुम्हें भी ताख पर। गुरूर करना ठीक नहीं होता किसी के लिए, गर्दिशे खाक हुए जो थे जमाने की आंख पर । रौशन थे जो सितारे फलक पर कभी, बुझ गये सभी चिता की ठंडी राख पर। भरने को पेट, ढकने को बदन काफी है, कोई नहीं खरीदता है कफ़न नाप कर । भूखे को निवाला दे, रोते हुए को हंसा, मिटाकर नफरत दिलों से, खुद को आफताब कर। बड़े बड़े करते हैं मुजरा जिंदगी की थाप पर, गुजरते ही लोग रख देंगे तुम्हें भी ताख पर।

यूं ना जिंदगी को जार जार करिए

यूं ना जिंदगी को जार जार करिए,    थोड़ा सा खुद से भी प्यार करिए।    ये इश्क का मुवामला है बर्खुरदार,।  जरा सा जीत को भी हार करिए।  हो जरूरत जंग में जो शहादत की, कुरबान खुद को बार-बार करिए। ठीक नहीं मजहबी सियासत करना, इरादों का अपने इश्तिहार करिए । जुल्म की जंग हो गई है पेचीदा,      कलम और थोड़ा धारदार करिए।

कैसे-कैसे लोग साहिबे मसनद हो गए

कैसे -कैसे लोग साहिबे मसनद हो गए , मजहब के सौदाई सब दहशत गर्द हो गए।   सियासती दंगों की फसल जब-जब लहराई ,   जितने भी हिजड़े थे शहर में, सब मर्द हो गए।   बिक जाती हैं बेटियां रोटियों खातिर, छाले सब रूह के बेहद बेदर्द हो गए।   कौन पूछता है सबब गरीबों का जहां में , बेटी जवान क्या हुयी, सब हमदर्द हो गए।   राहे-गुजर के पत्थर हुआ करते थे कभी, वक्त क्या बदला, सबके सब गुम्बद हो गए।   यहां अवाम तरसती रही निवालों के लिए, हालाते मुल्क पे वो बेशर्म बेहद हो गए ।

मैं खरीद दार जो हूं.....

सिस्टम में नहीं फिट बैठता, क्या करूं, थोड़ा सा मैं ईमानदार जो हूं। रो पड़ता हूं किसानों की खुदकुशी पर , थोड़ा सा मैं जमीनदार जो हूं। नहीं बेचा जाता मुझसे मेरा ज़मीर, थोड़ा सा मैं ज़मीर दार जो हूं। नहीं देखी जाती मुझसे अब ये लाचारी, थोड़ा सा मैं तामीर दार जो हूं। कैसे न करूं खरीद-फरोख्त ग़मे-बाजार में थोड़ा सा मैं खरीद दार जो हूं।

आसान नहीं होता हम हो जाना

मुझे मालूम है नहीं फर्क पड़ता तुम्हें मैं तुम्हारे साथ हूं या कि गुजर गया हूं इस जमाने से। अक्सर तुम मुझे मिल जाती हो मेरी नींदों के ख्वाबों में, क्या करूं मैं तन्हा रह कर भी तन्हा नहीं रह पाता हूं, तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षण मुझे अकेला रहने ही नहीं देते। तुम्हें आदत हो गई होगी अकेले रहने की क्योंकि तुमने कभी अपने आप को हम होने ही नहीं दिया। शायद हम होने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती, हम होने के लिए मैं के वजूद को मिटाना पड़ता है। जैसे कि तुम जी रहे हो मुझ में और मैं जी रहा हूं तुम में।

नीली धरती हो रही है फिर से लाल

पहाड़ों पर रखा सूरज, या फुनगी पर लटका चांद, न जाने क्यों लगता है उदास, शायद अब चिड़ियों की चहचाहट और नदियों  का कलरव बंद हो गया है। अब रातों में नहीं जगमगाता है तारों का शामियाना, अब तो बस आधुनिकता के धुए ने ढक रखा है पूरा आसमान। शायद अब बचे रहेंगे केवल दो ही रंग काला और लाल। कई वर्षों से नहीं दिखा है इंद्रधनुष, अब यह नीली धरती हो रही है फिर से लाल ।।

कैसा है ये मधुमास प्रिए

कैसा है ये मधुमास प्रिए, गुमसुम है जीवन – आस प्रिए। नीरस है जीवन राग न कोई गीत – विहाग, धूमिल धूमिल उजास प्रिए कैसा है ये मधुमास प्रिए। अब जीवन गीत सुनाए कौन मेरे मन को बहलाए कौन, अब तो सांसों का आना जाना भी, बस इक आभास प्रिए कैसा है ये मधुमास प्रिए।

यादें: गुजरती नहीं कभी

अभी- अभी  जैसे गुजरे हो वो लम्हें जिन्हें हम भूलने की  कोशिश में हैं, पर शायद, कभी कुछ गुजरता है या भुलाया जा सकता है? कितने समझदार हैं  सोचते हैं , सब गुजर जाएगा। पर नहीं,  समय भर देगा  रिक्तिक्ता, और शायद फिर से करना पड़े प्रयास कुछ गुजरा हुआ  भुलाने का।

यादें: जो रहती हैं ताउम्र ताज़ी।

जज़्बातों को तुम समेट लेना, मैं रख लूँगा तुम्हारा मन। कि बिखरने न पाये सबंधों की गठरी और हाँ, बोझ भी न बनने पाये। बना रहे जीवन में हल्कापन।। क्यों समय से पहले टूट जाती हैं ये ख्वाहिशें, या हो जाती हैं पैदा नयी ख्वाहिशें, पूरी होने पर। क्या यही है जीवन।। तुम्हारी अँगुलियों में, लिपटा हुआ मेरे केशों का बिखरा हुआ प्रेम। समेट रहा हूँ शामों को यादों में भीग रहा है हमारा मन।।