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नवंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरे हाकिम यह तो बता तेरा पयाम क्या है

मेरे हाकिम यह तो बता तेरा पयाम क्या है, अवाम की नजरों में  तेरा आयाम क्या है। चंद टुकड़ों खातिर देश को ही बेच दिया, ये गद्दारी नहीं तो फिर नमक हराम क्या है। फरामोशियां दिखती हैं तेरे अहसानों में, मुखालिफों के वास्ते एहतराम क्या है। बहुत सारे ख्वाब हैं इन आंखों की पलकों पर, अब ये तुम्हारी नई सुबह क्या, शाम क्या है। मिट जाएगी यह शोहरत तेरी पल भर में, बता फिर जन्नत के खातिर इंतज़ाम क्या है।

इस शहर में हर शख्स बिमार दिखता है

इस शहर में हर शख्स बिमार दिखता है, तेरी शक्ल में परवरदिगार दिखता है। कितना फरेब है दिलों में लोगों के, हर चौराहे पर बाजार दिखता है। क्या मासूमियत है इनके चेहरों पर, मुझको तो बख्तर में हथियार दिखता है। खड़ा वो शख्स जो दुश्मनों के साथ है, हमदम मेरा जिगरी यार दिखता है। वो शख्स जुबां मजहबी बोल रहा है, हमको तो सियासत दार दिखता है।

तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक

तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक। तुम क्या मुकम्मल करोगे मसलों को, तुम्हें ही तुम्हारा जवाब मुबारक। हो सकते थे और बेहतर हालात, रख लो, तुम्हें तुम्हारा हिसाब मुबारक । सूरत बदलने से नहीं बदलती सीरत, तुमको ये तुम्हारा नया हिजाब मुबारक। खुद ही खुद तुम खुदा बन बैठे हो तुम्हें यह तुम्हारा खिताब मुबारक। तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक।