नदी जो कभी भरी थी यौवन से, सदियों की सभ्यताएं करती थीं अठखेलियाँ इसकी उर्मियों में; अब सूख चुकी है पूरी तरह अवशेषित और लुप्त हो गयी है! हाँ, इसकी तलहटी में बसे गाँवों को बाढ़ का खतरा नहीं है अब; " कर्मांशा" हार चुकी है! लेकिन इसके दोनों ओर हरे जंगल और वन्य जीव भी लुप्त हो गए हैं; समय के साथ अब किसी पूर्णिमा या अमावस पर नहीं लगता जमावड़ा दूर-दूर से आये हुए जन सैलाबों का; नदी के सूखने पर नष्ट हो जाती हैं सदियों की संस्कृति और सूख जाया करती हैं सभ्यताएं!
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !