जज़्बातों को तुम समेट लेना, मैं रख लूँगा तुम्हारा मन। कि बिखरने न पाये सबंधों की गठरी और हाँ, बोझ भी न बनने पाये। बना रहे जीवन में हल्कापन।। क्यों समय से पहले टूट जाती हैं ये ख्वाहिशें, या हो जाती हैं पैदा नयी ख्वाहिशें, पूरी होने पर। क्या यही है जीवन।। तुम्हारी अँगुलियों में, लिपटा हुआ मेरे केशों का बिखरा हुआ प्रेम। समेट रहा हूँ शामों को यादों में भीग रहा है हमारा मन।।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !