गम के सिलसिले थमते कहाँ हैं; न जाने तुम कहाँ हो, हम कहाँ हैं। वक्त रोज़ गुजार देता है हमको; सदियों से लम्हे गुजरते कहाँ हैं। अक्सर गूँजती हैं सन्नाटों में तन्हाइयाँ; वीरान दोनों के ही अपने जहाँ हैं। हर शाम गुजरती है गमगीन होकर; महफिलों में भी हम रहते तन्हा हैं। गम के सिलसिले थमते कहाँ हैं; न जाने तुम कहाँ हो, हम कहाँ हैं।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !