अतृप्त मन की
अतृप्त जिज्ञासा,
शान्त क्षणों का
उद्विग्न कुहासा।
तुम्हारा आना
सुखद था पर,
जाना तुम्हारा
दुखद क्यों है?
शायद मन को
अभी तुम्हारे
आने की है आशा।
जब चले ही गए हो,
फिर रह रह कर
क्यों आने की
आहट भर देते हो।
कितना दूँ अब
मेरे दिल को
झूठा सा दिलासा।
यह पथ भी कितना
कठिन है और
क्रूर नियति की
क्या यही गति है,
करना है पूर्ण यह
जीवन पथ
लिए साथ एक
झूठी अभिलाषा।
अतृप्त मन की
अतृप्त जिज्ञासा,
शान्त क्षणों का
उद्विग्न कुहासा।
अतृप्त जिज्ञासा,
शान्त क्षणों का
उद्विग्न कुहासा।
तुम्हारा आना
सुखद था पर,
जाना तुम्हारा
दुखद क्यों है?
शायद मन को
अभी तुम्हारे
आने की है आशा।
जब चले ही गए हो,
फिर रह रह कर
क्यों आने की
आहट भर देते हो।
कितना दूँ अब
मेरे दिल को
झूठा सा दिलासा।
यह पथ भी कितना
कठिन है और
क्रूर नियति की
क्या यही गति है,
करना है पूर्ण यह
जीवन पथ
लिए साथ एक
झूठी अभिलाषा।
अतृप्त मन की
अतृप्त जिज्ञासा,
शान्त क्षणों का
उद्विग्न कुहासा।
khubsurat shabdon se sazi sarthak rachana....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - प्यार में दर्द है.
झूठी ही सही .. कभी कभी ये अभिलाषा जरूरी हो जाती है जीने के लिए ...
जवाब देंहटाएंजब चले ही गए हो,
जवाब देंहटाएंफिर रह रह कर
क्यों आने की
आहट भर देते हो।
कितना दूँ अब
मेरे दिल को
झूठा सा दिलासा।
जीने के लिए कुछ तो बहाना जरुरी है