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नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिश्ते !

रिश्ते और उनके मायने न जाने कहाँ छूट गये ! सारी संवेदनाएं मात्र एक नाटक पात्र स दृश्य प्रदर्शित की जाती हैं ! मार्मिक दुर्घटनाओं पर आलेख, टिप्पणी पुस्तक रचना या या फिल्मांकन किया जा सकता है! परन्तु, इन संवेदनाओं से जुड़े कोमल तंतु जैसे रिश्तों के आयाम और मूल्य स्थापित करना , निरर्थक और विडम्बना पूर्ण हैं! पर अर्थ के उपार्जन हेतु  रिश्तो को बेंच देते है और उनका गला घोटने में भी कोई ग्लानि नही होती !

तुम कहाँ हो?

प्रियवर तुम कहाँ हो?   तुम कहाँ हो?  मेरी कश्ती के किनारे, मेरे जीवन के सहारे; तन मन मेरे,    तुम कहाँ हो?  प्रियवर तुम कहाँ हो?   तुम कहाँ हो?  मन के नूतन अभिनन्दन ! सुंदर जीवन के नवनंदन, प्राण धन मेरे,  तुम कहाँ हो?  प्रियवर तुम कहाँ हो?   तुम कहाँ हो?  जीवन के नूतन अभिराम, मन मंदिर के प्रिय घनश्याम, प्रेम बंधन मेरे   तुम कहाँ हो?  प्रियवर तुम कहाँ हो?   तुम कहाँ हो?  ढूढ़ते जिसे ये सूने नयन, पुकारे जिसे ये प्यासा मन; समर्पण मेरे,  तुम कहाँ हो?  प्रियवर तुम कहाँ हो?   तुम कहाँ हो? 

असत्य, अस्तित्त्व सत्य का

  असत्य ,  जिसने   बदला   इतिहास , जिसके   न   होने   पर   होता   है   सत्य   का   परिहास ! असत्य , न   रखते   हुए   अस्तित्त्व , करता   सत्य   को   साकार ; सत्य   का   जब   हुआ   उपहास , असत्य   से   ही   मिला   प्रभास ! किचित असत्य   नहीं    होता   यथार्थ !   परन्तु ,  सत्य   के   महत्त्व   का   आधार   है   यही   असत्य , हम   अब   भी   सत्य   औ   असत्य    के   महत्त्व   के   मध्य , हैं    विभ्रमित   और   विस्मित  ! इस   पार   है   असत्य  , उस   पार   वह   प्रत्यक्ष  , सत्य  !!