रिश्ते और उनके मायने न जाने कहाँ छूट गये ! सारी संवेदनाएं मात्र एक नाटक पात्र स दृश्य प्रदर्शित की जाती हैं ! मार्मिक दुर्घटनाओं पर आलेख, टिप्पणी पुस्तक रचना या या फिल्मांकन किया जा सकता है! परन्तु, इन संवेदनाओं से जुड़े कोमल तंतु जैसे रिश्तों के आयाम और मूल्य स्थापित करना , निरर्थक और विडम्बना पूर्ण हैं! पर अर्थ के उपार्जन हेतु रिश्तो को बेंच देते है और उनका गला घोटने में भी कोई ग्लानि नही होती !
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !