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देश विकास कर रहा है

देश विकास कर रहा है, भुखमरी, बेरोज़गारी और बीमारी से लाचार; फिर भी देश विकास कर रहा है। कभी पुलवामा,  कभी ३७०, या फिर राम मन्दिर- सबरीमाला  जब- तब लालीपोप का गुल्ला  मीडिया के द्वारा , सरकार जनता के जेहन में डाल देती है। और यहां के चार बुद्धि- जीवी टीवी पर  जीडीपी, पाक- चीन समस्या पर चपड़- धौं धौ, करके सिस्टम को कोसेंगे, और फिर सरकार यू एन के चक्कर लगाकर  जनता को  को बताएगी कि हमने पूरी दुनिया को अपने साथ ले आए हैं.  लोगो की मेहनत के पैसे टैक्स में छीन कर ये  तो मौज करते हैं और जनता  विकास के झांसे में रहती है, जबकि मूल मुद्दे वहीं के वहीं रह जाते हैं। फिर भी देश विकास कर रहा है। जब कभी आक्रोश की चिंगारी भड़कने लगती है  तो गुमराह करने के लिए  नए मुद्दे बनाए जाते हैं- गौ हत्या , दंगा, या मासूमों का बलात्कार । लेकिन कहीं न कहीं तो देश विकास कर रहा है।

चुनाव और प्रजातंत्र

भारत को आजाद हुए 70 साल पूरे हो गए और 70 सालों से यहां पर लोकतंत्र बहाल है। कहने को और संवैधानिक रूप से इस देश में प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र है और उसके अपने मौलिक अधिकार हैं। भारत के आजाद होते ही सरकार बनाने का एकमात्र विकल्प कांग्रेस थी और जैसे सत्ता की सियासत चालू हुई भारत में राजनैतिक लिप्सा और लोलिपता बढ़ती गई। यद्यपि भारत को आजाद कराना भी एक पूर्व नियोजित अवधारणा थी जिसके चलते इस देश में रहने वाली  सीधी साधी जनता पर मनमाना शासन किया जा सके और इस अवधारणा को साकार भी किया गया जिसका परिणाम यह हुआ की लोकतंत्र एक केवल औपचारिक तंत्र रह गया। प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात या उसके मध्य में इस राजनीतिक बाजारवाद में कुछ लोग पूर्ण रूप से व्यवसायिक होकर राष्ट्रवाद  के नाम पर अपना राजनीतिक व्यवसाय चमकाते गए और इन 70 सालों में जितनी भी सरकारे बनी उनके राजनीतिक दलों के तथाकथित व्यवसाई रूपी नेता लोग दिन दूनी रात दस गुनी तरक्की करते गए लेकिन इस देश की आम जनता आम ही रही।