अभी-अभी तो वे गये हैं आने को कह कर, अभी तो बीते हैं कुछ ही बरस, कुछ भी तो नहीं हुआ है नीरस! खुला ही रहने दो इस घर का यह दर.....! अभी-अभी तो वे गये हैं आने को कह कर, हर- आहट पर, चौंक उठती, रह-रह कर कहता क्षण धीरज धर, भ्रम से न मन भर , कहाँ टूटी है सावन की सब्र.....! अभी-अभी तो वे गये हैं आने को कह कर, अभी तो ऑंखें ही पथराई हैं, कहाँ अंतिम घड़ी आयी है , अभी प्रलय की घटा कहाँ छाई है, देखूँगी मैं अभी उन्हें नयन भर....!
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !