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भूख

शरीर के धारण करते ही पैदा हो जाती है भूख, जो मरने तक बनी रहती है । सारा जीवन इसी भूख के इर्द-गिर्द घूमता रहता है काल के पहिये की मानिन्द। भूख कभी नहीं मरती, मार देती है संवेदनाएं वेदनाएं और सीमाएं । हम भूख को जिन्दा रखने के लिये मारते रहते हैं जीवन को । भूख और जीवन दोनों ही नहीं मरते कभी । या भूख के मरने से पहले मर जाता है जीवन, कि जीवन के मरते ही मर जाती है भूख।

गुलामी की राह पर बढ़ते कदम

हम देशवासी सरकारों से उम्मीद करते हैं कि हमें स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और सुरक्षा मिलेगी । पर मिलता क्या है? रोटियों के लिये स्त्रियों को लुटना पड़ता है, सुरक्षा करने वाले रक्षक मौका पाते ही नोच डालते हैं। रईस लोग अपनी शाम रंगीन करने के लिये कितनी ही पुत्रियों की जिन्दगियाँ नरक बना देते हैं । हर सरकार नई नई कागजी योजनायें बनाकर हमारे ही पैसों को डकार जाती हैं। हम दिन पर दिन कर्ज में डूब रहे हैं, सत्ता और विपक्ष मिलकर हमें लूटते रहते हैं , थोड़े व्यक्तिगत लाभ के लिये हम इन्हीं धूर्तों को सत्ता सौंप देते हैं और ये लोग हमें धर्म के नाम पर गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि हम जानते हुये बार बार यही गलती करते हैं। हम गुलामी की ओर अग्रसर हैं और हमारी सन्तानें दासता का जीवन जीने के लिये मजबूर हो रहीं हैं । आइए इस गुलामी की तरफ कदम से कदम मिलाकर चलें, कहीं भविष्य का गौरवशाली इतिहास कलंकित न हो जाय कि हमारी पीढ़ी ने देश गुलाम बनाने में योगदान नहीं किया, या शायद इतिहास ही न लिखने लायक रहे यह देश ।

उजालों के दीप !

जैसे दीपक के जलने से  जलता है अँधेरा , और अँधेरे के जलने से  जलती है रात ! ठीक वैसे ही  क्यों नहीं जलती  ईर्ष्या हमारे दिलों की ! जलाने से तो जलता है  जल भी , तो जलनशील  चीजों को जलने में  फिर कैसी देर ! जला  दो दिलों की जलन को  कि जलने लगें  हमारे दिलों में  फिर से उजालों के दीप !

अंतिम कविता का पहला अंश

ओह ! इन चमकते रेत के दानों में  आज भी हमारे साथ बिताये  पलों की चमक वैसी ही है । और  जेहन में उन ठहरे हुये लम्हों की यादें बिल्कुल वैसी ही ताजी हैं जैसे अभी खिली हुयी गुलाब की कली । आह !  कितना सुखद था ये बीता हुआ ख्वाब; जिसमें पल भर के लिये तुम मेरे पास आये तो सही । क्यों  मैं देख रहा हूँ खुली आखों से  अब भी तुम्हारा ही ख्वाब । कि जैसे तुम गये ही नहीं हो कहीं। हाँ  मैं फिर कहता हूँ  कि मैं नहीं कह सकता  उन शब्दों को जो  तुम सुनना चाहते हो । बस  तुम पढ़ लो मेरे खामोश  लबों पर थिरकते हुये  वो अपने प्रिय शब्द ।

मुझे मेरे यार का ठिकाना बता दे !

तुझे मंदिर , मस्जिद काबा मुबारक , मुझे मेरे यार का ठिकाना बता दे ! सलीका क्या है तेरी महफ़िल का , साकी मुझे मेरा पैमाना बता दे ! नूरे-चश्म की मयकशीं का नशा कहाँ , रहे न होश वो मयखाना बता दे ! तरसती है ये निगाह दीदार को , दीदारे-यार नजराना बता दे ! बाकी भी गुजर जाय खुशफहमी में , गमे-दिल का सनम खजाना  बता दे !​

किस खता की सजा दिये जाते हो

किस खता की सजा दिये जाते हो; खुद ही खुद से अजनबी हुए जाते हो । माना गमों का साथ है तमाम उम्र भर; नाहक ही अश्कों को पिए जाते हो। सब्र करलो ,सब कुछ नहीं मिलता सबको, क्यों कर ही मुफलिसी में जिये जाते हो । बादलों की छाँव का क्या यकीन करना , धूप पर भी क्यों यकीन किये जाते हो। स्वप्न सी है यह दुनिया दिखावे की दोस्तों, हकीकत से क्यों दुश्मनी किये जाते हो।