बेरुखी इस कदर बढ़ गयी हमसे , मुझे अब वे पराया कहने लगे ! बाद मुद्दत के ज़ुबां पे आयी, जो ये शिकस्त की कहानी , फासले जो दरमयां करने लगे......... बेरुखी इस कदर बढ़ गयी हमसे , मुझे अब वे पराया कहने लगे ! साथ निभाने की खाकर कसमे, बात आयी जब रस्मे निबाह की हाले मुफलिसी बयाँ करने लगे........... बेरुखी इस कदर बढ़ गयी हमसे , मुझे अब वे पराया कहने लगे ! ज़िन्दगी जीना तो एक तकल्लुफ था तजुर्बे हवादिश का जब ज़िक्र हुआ , राह-ए-गुजर को जाया कहने लगे ............. बेरुखी इस कदर बढ़ गयी हमसे , मुझे अब वे पराया कहने लगे !
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !