बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
फैला था कुहरा
अति घनघोर ,था चतुर्दिश
शीत लहर का शोर ,
कुहासे के छटने पर ,
सूरज ने ऑंखें खोली है ....
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
शिशिर रातों के
हिम पाटों में
शीत से व्याकुल हो
तप-तप टपकती
जल की बूंदों से
निशा में आकुल हो हमसे आज करती
प्रकृति भी यूँ कुछ
ठिठोली है............
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
देख कर जलद
उड़ते गगन में
आम्र कुंजों में मग्न हो,
नाच उठे मयूरी /
सितारों जड़ी ओधनी
ओढ़ के धरा पर
आयी हो शाम सिंदूरी
मानो शृंगारित हो
नव वधू प्रिय मिलन को चली है.........
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
पौधों पर नव कलियाँ
खिल-खिल कर झूम रही ,
सरसों की अमराई में
तितलियाँ फूलों को चूम रही
मानो प्रकृति ने आज धरा पर
पीली चूनर डाली है ..........
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
नभ में गूँज रहा
विहगों का कलरव
खिला हुवा अम्बुज है
ज्यूं सरिता का कुल गौरव
निज योवन कि अंगड़ाई में
निस्त्रा भी मचली है.............
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है/
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