व्यथा विकृत करती अंतस को ,
मनः स्थिति हो उठती विचलित /
जीवन संयम में जो था निरत ,
कर्म पथ पर हो जाता प्रमिलित//
क्षणिक आह्लाद का गह्वर पाश,
संयत जीवन को कर देता बाधित/
हो प्राप्त यदि वह चिर आह्लाद ,
पूर्ण हो पथ, जिस हेतु है सम्पादित //
पाकर मिथ्या को हर्षित है प्रत्यक्ष से,
यह तो भ्रम मात्र है अंतस का/
प्राप्त हो जब वह यथार्थ भविष्य जो ,
जीवन परिष्कृत हो तापस का /
जीवन की यह मिथ्या एषणा,
कृतिका को देती दृढ सम्बल /
सघन हो जाती व्यथा बीथिका ,
विवृत्त होती तमीशा प्रबल /
क्षणिक हर्ष पश्चात सघन विषाद,
और कृतिका का कुटिल तांडव/
होकर पंथ त्यक्त चिर आह्लाद से,
कर्म पथ से होकर पराभव/
हो प्राप्त जो चिर आह्लाद जीवन से,
श्रांत पथिक को मिले पूर्ण विराम /
कृतिका का अवगुंठन हो उन्मीलित ,
हो पूर्ण लक्ष्य जो साश्वत अभिराम //
उत्कृष्ट रचना!
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