प्रिये,
तुम मेरी 
उत्कंठा को समझो;
अंतस की व्यथा,
जो,
छाई है मस्तक पर,
कर न  सका 
प्रतिकार कभी ,
उनका जीवन भर ;
उस अवचनीय की ,
दारुण 
प्रवंचना को समझो,
प्रिये,
तुम मेरी 
उत्कंठा को समझो;
सृजेता नियत ,
अज्ञात
प्रारब्ध का अनुमोदन;
असमय पर 
महाकाल का 
वह काल प्रभंजन;
उस व्यथित की
विह्वल 
वेदना को समझो;
प्रिये,
तुम मेरी 
उत्कंठा को समझो !
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