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संदेश

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।
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स्त्री

 चुप रह जाती हूँ सुनकर तुम्हारे तिरस्कृत वचन इसलिए नहीं कि तुम पुरुष हो, बल्कि इसलिए  सम्बन्धों और संस्कारों की श्रृंखला, कहीं कलंकित न हो जाए  समर्पण की पराकाष्ठा । मुझे भी आता है तर्क-वितर्क करना, पर चुप रह जाती हूँ कि कौन करेगा सम्पूर्ण सृष्टि का संवर्धन।  स्त्री ही बन सकती है स्त्री, नहीं हो सकता विकल्प कोई स्त्री का । कहीं बिखर न जाय

तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही

 तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही; हम जिगर निशाने पर लिये  बैठे हैं। तुम से भले तो गैर निकले यहाँ,  तुम्हारे दिये जख्म दिल पे लिए बैठे हैं। इंतिहा क्या होगी सितमों की अब, हर इक इल्जाम सर पे लिए बैठे हैं। तेरे बारे बहुत सुना था  शहर में, हर इक शिनाख्त हम  किये बैठे हैं। बेवफाई का आलम क्या होगा अब, यहाँ हर इक चोट छुपाकर बैठे हैं।

अमरबेल

ये जो कैक्टस पर दिख रही है अमरबेल , जानते हो यह भी परजीवी है ठीक राजतन्त्र की तरह।   लेकिन लोकतंत्र में कितने दिन पनप सकेगी ये अमरबेल , खत्म होगा इसका भी अमरत्व आखिर एक दिन

चाहना

 उसने कब मुझे ही मुसलसल चाहा, जब भी चाहा - अलैहदा ही चाहा। अहदे वफ़ा की क्या दरकार करें, हमने भी उसको इस कदर न चाहा। चाहत उल्फत की थी दोनों दिलों में , मगर किसी ने भी किसी को न चाहा।   मगरूर थे सब अपनी खुद्दारी में, ज़माने भर ने ज़माने को न चाहा।   कितनी ख़ुशनुमा होती ये दुनिया, बन्दे ने गर बन्दे को होता चाहा।

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

परिवर्तन

कोई युद्ध  अंतिम नहीं होता, कोई क्रांति नहीं होती आखिरी। शांति का पल नहीं ठहरता देर तक, न ही ठहरती है हवा बदलाव की। संघर्ष पैदा हो जाता है भूख के पैदा  होते ही। वो फिर चाहे  सर्वहारा का संघर्ष हो या फिर शोषितों का सत्ता के खिलाफ।  समय समय पर होते रहेंगे  युद्ध और क्रांतियां, क्योंकि परिवर्तन  नियम जो है प्रकृति का।