न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली जायेगी।
चुप रह जाती हूँ सुनकर तुम्हारे तिरस्कृत वचन इसलिए नहीं कि तुम पुरुष हो, बल्कि इसलिए सम्बन्धों और संस्कारों की श्रृंखला, कहीं कलंकित न हो जाए समर्पण की पराकाष्ठा । मुझे भी आता है तर्क-वितर्क करना, पर चुप रह जाती हूँ कि कौन करेगा सम्पूर्ण सृष्टि का संवर्धन। स्त्री ही बन सकती है स्त्री, नहीं हो सकता विकल्प कोई स्त्री का । कहीं बिखर न जाय