अंतस को तापित करती है, यह विदग्ध ज्वाला ! स्निग्ध हो उठे ह्रदय. दे दो वह अमिय मय हाला !! ये है जीवन की तृष्णा, जो करती व्योमोहित पान्थ को ! हो निर्लिप्त कर लक्ष्य संधान, हेतु व्यथित न कृत्यांत हो !! कुटिल काल चक्र के काल-व्याल से, क्या कुछ अच्क्षुण रह पाया है ! श्रांत जीवन की आहात सांसों से , कौन निर्वाण पथ पूर्ण कर पाया है !
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !