ओ मेरे
उर्जस्वित प्राण !
कब हरोगे
इस जीवन का त्राण!
नित-नित
तृषा, क्षुधा और एषणा,
करते उत्पन्न
व्यवधान !
अब तो ऊषा
कर दो प्रसारित,
हो जाय जीवन
पूर्ण अभिसरित!
कर दो इस तमीशा
का अवसान !
अतृप्त अधीर
कर रहा करुण पुकार !
विजयी कर दो यह
जीवन की हार!
व्यर्थ न करो ये
आह्वान !
ओ मेरे
उर्जस्वित प्राण !
कब हरोगे
इस जीवन का त्राण!
विकल मन के सुन्दर भाव
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