सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

"पुराने रास्ते, पुरानी गलियाँ ! "


सुबह उठता हूँ तो सोंचता हूँ!
आज नए रास्तों पे चलूँगा,
अपनी मंजिल को मैं पा लूँगा !

निकलते ही बाहर पुरानी गलियाँ
भर लेती हैं आगोश में,
चल पड़ता हूँ फिर 
उन्हीं पुराने रास्तों पर !

मेरे कदम खुद ही,
 कर देतें हैं रुख,
उन्हीं चिर-परिचित 
रास्तों की तरफ!
फिर भटक जाता हूँ,
अपनी एक नई मंजिल के रास्तों से !

ये भटकाव और परिचय की आदत,
दोनों ही मुझे,
मेरी मंजिल से वंचित किये हैं !

न जाने वह सुबह कब होगी,
जब मैं चल पडूंगा,
अपनी उस मंजिल की ओर!
और पा लूँगा अपनी
उस वंचिता मंजिल को !! 

टिप्पणियाँ

  1. साहस ... से ही सब कुछ संभव है ... कविता इस इंगित कारती है ... मेरे ब्लॉग पर आये

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।