ओह ! इन चमकते रेत के दानों में आज भी हमारे साथ बिताये पलों की चमक वैसी ही है । और जेहन में उन ठहरे हुये लम्हों की यादें बिल्कुल वैसी ही ताजी हैं जैसे अभी खिली हुयी गुलाब की कली । आह ! कितना सुखद था ये बीता हुआ ख्वाब; जिसमें पल भर के लिये तुम मेरे पास आये तो सही । क्यों मैं देख रहा हूँ खुली आखों से अब भी तुम्हारा ही ख्वाब । कि जैसे तुम गये ही नहीं हो कहीं। हाँ मैं फिर कहता हूँ कि मैं नहीं कह सकता उन शब्दों को जो तुम सुनना चाहते हो । बस तुम पढ़ लो मेरे खामोश लबों पर थिरकते हुये वो अपने प्रिय शब्द ।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !