ओह !
इन चमकते रेत के दानों में
आज भी हमारे साथ बिताये
पलों की चमक वैसी ही है ।
और
जेहन में उन ठहरे हुये लम्हों की
यादें बिल्कुल वैसी ही ताजी हैं
जैसे अभी खिली हुयी गुलाब की कली ।
आह !
कितना सुखद था ये बीता हुआ ख्वाब;
जिसमें पल भर के लिये
तुम मेरे पास आये तो सही ।
क्यों
मैं देख रहा हूँ खुली आखों से
अब भी तुम्हारा ही ख्वाब ।
कि जैसे तुम गये ही नहीं हो कहीं।
हाँ
मैं फिर कहता हूँ
कि मैं नहीं कह सकता
उन शब्दों को जो
तुम सुनना चाहते हो ।
बस
तुम पढ़ लो मेरे खामोश
लबों पर थिरकते हुये
वो अपने प्रिय शब्द ।
इन चमकते रेत के दानों में
आज भी हमारे साथ बिताये
पलों की चमक वैसी ही है ।
और
जेहन में उन ठहरे हुये लम्हों की
यादें बिल्कुल वैसी ही ताजी हैं
जैसे अभी खिली हुयी गुलाब की कली ।
आह !
कितना सुखद था ये बीता हुआ ख्वाब;
जिसमें पल भर के लिये
तुम मेरे पास आये तो सही ।
क्यों
मैं देख रहा हूँ खुली आखों से
अब भी तुम्हारा ही ख्वाब ।
कि जैसे तुम गये ही नहीं हो कहीं।
हाँ
मैं फिर कहता हूँ
कि मैं नहीं कह सकता
उन शब्दों को जो
तुम सुनना चाहते हो ।
बस
तुम पढ़ लो मेरे खामोश
लबों पर थिरकते हुये
वो अपने प्रिय शब्द ।
सुन्दर रचना.... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंयहाँ यहाँ भी पधारें
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