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"मेरा भारत महान! "


सरकार की विभिन्न 
सरकारी योजनायें
विकास के लिए नहीं;
वरन "टारगेट अचीवमेंट
ऑन पेपर" और 
अधिकारीयों की 
जेबों का टारगेट 
अचीव करती हैं!

फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार
और एक्सपोजर विजिट 
या तो वास्तविक तौर पर 
होती नहीं या तो मात्र
पिकनिक और टूर बनकर 
मनोरंजन और खाने - पीने का 
साधन बनकर रह जाती हैं!

हजारों करोड़ रूपये इन 
योजनाओं में प्रतिवर्ष 
विभिन्न विभागों में 
व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं!

ऐसा नहीं है कि
इसके लिए मात्र 
सरकारी विभाग ही 
जिम्मेवार हैं , जबकि
कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी
देश को लूटने का प्रपोजल 
सेंक्शन करवाकर 
मिलजुल कर 
यह लूट संपन्न करवाती हैं !

इन विभागों में प्रमुख हैं
स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा;
कृषि, उद्यान, परिवहन, 
रेल, उद्योग, और भी जितने 
विभाग हैं सभी विभागों 
कि स्थिति एक-से- एक 
सुदृढ़ है इस लूट और 
भृष्टाचार कि व्यवस्था में!

और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी
व्यक्तिगत लाभ के लिए,
इन अधिकारीयों और 
विभागों का साथ देते हैं;
और लाभान्वित होते है या
होना चाहते हैं!


अब आप बताईये
किस विभाग से जुड़े हैं 
और किस लूट में 
कितने प्रतिशत के 
भागीदार हैं
यदि नहीं तो कौन से 
विभाग से लाभान्वित 
होना चाहते हैं!
फिर आप भी सीना तान के 
कह सकते हैं 
"मेरा भारत महान! "

टिप्पणियाँ

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

    जवाब देंहटाएं
  2. आज कल के हालात पर करारा व्यंग्य ....सब कुछ ऐसा ही तो हो रहा है

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने

    जवाब देंहटाएं
  4. अब आप बताईये
    किस विभाग से जुड़े हैं
    और किस लूट में
    कितने प्रतिशत के
    भागीदार हैं------वर्तमान का सच
    वाकई एस ही देश महान है
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर उत्कृष्ट प्रस्तुती.

    जवाब देंहटाएं
  6. वर्तमान का यही सच है,,,नेता अधिकारी चमचे सभी मिलकर देश को लूटने में व्यस्त है और लाभ उठा रहे है,,,

    RECENT POST... नवगीत,

    जवाब देंहटाएं
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  9. सभी अपना अपना पूरा योगदान दे रहे हैं ..देश को लूटने में ... इस प्रवृत्ति पर प्रहार करती एक तीक्ष्ण कविता ...

    जवाब देंहटाएं
  10. सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
    साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )

    जवाब देंहटाएं

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मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

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