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तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही

 तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही;

हम जिगर निशाने पर लिये  बैठे हैं।


तुम से भले तो गैर निकले यहाँ, 

तुम्हारे दिये जख्म दिल पे लिए बैठे हैं।


इंतिहा क्या होगी सितमों की अब,

हर इक इल्जाम सर पे लिए बैठे हैं।


तेरे बारे बहुत सुना था  शहर में,

हर इक शिनाख्त हम  किये बैठे हैं।


बेवफाई का आलम क्या होगा अब,

यहाँ हर इक चोट छुपाकर बैठे हैं।

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मयकशी मयखाने में न रही

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तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक

तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक। तुम क्या मुकम्मल करोगे मसलों को, तुम्हें ही तुम्हारा जवाब मुबारक। हो सकते थे और बेहतर हालात, रख लो, तुम्हें तुम्हारा हिसाब मुबारक । सूरत बदलने से नहीं बदलती सीरत, तुमको ये तुम्हारा नया हिजाब मुबारक। खुद ही खुद तुम खुदा बन बैठे हो तुम्हें यह तुम्हारा खिताब मुबारक। तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक हमको हमारा ये चराग मुबारक।

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मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।