सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही

 तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही;

हम जिगर निशाने पर लिये  बैठे हैं।


तुम से भले तो गैर निकले यहाँ, 

तुम्हारे दिये जख्म दिल पे लिए बैठे हैं।


इंतिहा क्या होगी सितमों की अब,

हर इक इल्जाम सर पे लिए बैठे हैं।


तेरे बारे बहुत सुना था  शहर में,

हर इक शिनाख्त हम  किये बैठे हैं।


बेवफाई का आलम क्या होगा अब,

यहाँ हर इक चोट छुपाकर बैठे हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

आम आदमी: " Used To "

देश जल रहा है; लोग झुलस रहे हैं, सरकार और सरकारी  महकमे भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं! युवा आधुनिकता की  चकाचौंध में भ्रमित है; मीडिया मुद्दों में  उलझा रही है! शिक्षा व्यवसाय बन गयी  धर्म लोगों को गुमराह  कर रहा  है ; प्रगति और विकास  मानवता और प्रकृति का पतन कर रहें हैं! कोई भी न तो  सुखी है औरन ही संतुष्ट! एक ओर जहाँ समाज  सोंच बदलने की बात करता है  वहीँ दूसरी ओर वह सब  वर्जनाएं तोड़ता जा रहा है ; स्त्री को माँ, बहन और बेटी नहीं, एक भोग की वस्तु बना दिया है!  सिनेमा और साहित्य  सब एक ही ले में  बह रहें हैं! और आम आदमी समझता है इसमें  उसकी क्या गलती है? और उसका क्या लेना - देना है! परन्तु जब तक  आम आदमी "Used To"  रहेगा तब तक  न तो देश बदल सकता है और न ही समाज! अब पानी नाक तक  आ चुका है और  इअससे पहले सिर्फ तुम्हें और  तुम्हें ही डुबा  दे; खड़े हो जाओ और  जहाँ जिस जगह से  खड़े हो चल पड़ो इन सब को बदलने के लिए, क्योंकि जीवन अनंत है! समाज सभ्यता और देश को बचाने के