तुम तीरे नज़र चलाओ तो सही;
हम जिगर निशाने पर लिये बैठे हैं।
तुम से भले तो गैर निकले यहाँ,
तुम्हारे दिये जख्म दिल पे लिए बैठे हैं।
इंतिहा क्या होगी सितमों की अब,
हर इक इल्जाम सर पे लिए बैठे हैं।
तेरे बारे बहुत सुना था शहर में,
हर इक शिनाख्त हम किये बैठे हैं।
बेवफाई का आलम क्या होगा अब,
यहाँ हर इक चोट छुपाकर बैठे हैं।
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