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स्त्री

 चुप रह जाती हूँ
सुनकर तुम्हारे तिरस्कृत वचन
इसलिए नहीं कि
तुम पुरुष हो,
बल्कि इसलिए 
सम्बन्धों और संस्कारों
की श्रृंखला,
कहीं कलंकित न हो जाए 
समर्पण की पराकाष्ठा ।

मुझे भी आता है
तर्क-वितर्क करना,
पर चुप रह जाती हूँ
कि कौन करेगा
सम्पूर्ण सृष्टि का संवर्धन। 
स्त्री ही बन सकती है स्त्री,
नहीं हो सकता विकल्प कोई स्त्री का ।
कहीं बिखर न जाय

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