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भूख

शरीर के
धारण करते ही
पैदा हो जाती है
भूख,
जो मरने तक
बनी रहती है ।
सारा जीवन
इसी भूख के इर्द-गिर्द
घूमता रहता है
काल के पहिये की मानिन्द।
भूख कभी नहीं मरती,
मार देती है
संवेदनाएं
वेदनाएं
और सीमाएं ।
हम भूख को
जिन्दा रखने के लिये
मारते रहते हैं
जीवन को ।
भूख और जीवन
दोनों ही नहीं
मरते कभी ।
या
भूख के मरने से पहले
मर जाता है जीवन,
कि जीवन के मरते ही
मर जाती है भूख।

टिप्पणियाँ

  1. वाकई सत्‍य यही है। भूख के लिए कुछ भी नहीं रहता। यहां तक कि जीवन भी।

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  2. भूख कभी नहीं मरती,
    मार देती है
    संवेदनाएं
    वेदनाएं
    और सीमाएं ।
    ..सच आज ऐसा ही देखने को ज्यादा मिलता है .
    बहुत बढ़िया प्रेरक रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. धीरेंद्र जी आपकी ये रचना बहुत ही अच्छी है इसमें इंसान की भूख आज के समय में भुत ही ज्यादा हो गई जिससे पुरे समाज को इसकी छति पहुंच रही है...... आप इस तरह की रचनाएं शब्दनगरी
    पर भी प्रेषित कर सकते हैं। ...

    जवाब देंहटाएं

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