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क्या हूँ मैं?


मुझे वो पढ़ता रहा 
गढ़ता रहा 
कभी एलोरा की गुफाओं ,
कभी पिकासो की
मनः स्थितियों में!

लेकिन 
कभी वो नहीं 
बदल सका 
अपनी संकुचित 
और शंकालु 
प्रवृत्ति 
और 
डसने को 
तत्पर रहता है
हर क्षण !

और आज तक मैं
अनभिज्ञ  ही रही 
मेरा अस्तित्व 
और मैं क्या हूँ 
इस पुरुष प्रवृत्ति 
के लिए !
  ?

टिप्पणियाँ

  1. स्‍त्री मन की स्‍वाभाविक अकुलाहट।
    अन्तिम अन्‍तरे में "अस्तित्‍व" शब्‍द ठीक कर लें।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छे भाई साहब ..आज कल की दशा पर तंज छोडती हुई रचना

    recent poem : मायने बदल गऐ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना...
    पुरुष होते हुए स्त्री मन को समझने के लिए आपको नमन...

    विकेश जी की बात पर गौर करें
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. स्त्री के अंतर्मन की व्यथा का सुन्दर चित्रण !

    जवाब देंहटाएं
  5. और आज तक मैं
    अनभिग्य ही रही
    मेरा अस्तित्त्व
    और मैं क्या हूँ
    इस पुरुष प्रवृत्ति
    के लिए !
    भावपूर्ण रचना..

    जवाब देंहटाएं

  6. दिनांक 07/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. कविता और कहानियों में उसकी शस्खियत जितनी रंगीनी से दिखाई जाती है काश सच उतना स्याह न होता. सुन्दर अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  8. वजूद के सृजन और खुद के मूर्तिकरण की बेजोड़ प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर रचना ,बढ़िया अभिव्यक्ति
    New post :अहंकार

    जवाब देंहटाएं
  10. ये सच है कि भारतीय समाज पुरूष प्रधान है परंतु ये भी सच है कि भारतीय संविधान स्त्री प्रधान है । आपकी कवितायें बहुत बढि़या हैं ।

    जवाब देंहटाएं

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