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संवेग संवेदनाओं का !

संवेदनाएं ,
हो चुकी हैं 
चेतना शून्य !
अब ये इंसान 
रह गया बनकर 
एक हांड-मांस का
पुतला भर ,


और इससे अब 
उम्मीदें करना 
व्यर्थ है !
यह मात्र 
जिन्दा तो है
पर इसकी कुछ करने 
की क्षमता 
लुप्त हो गयी है !


सांसें लेना भर
जिन्दा होने के
चिह्न नहीं हैं,
और भी कुछ जरूरी है 
इंसान होने के लिए,
जब तक तुम्हारी 
संवेदनाएं जीवित नहीं है ,
तुम जिन्दा कहाँ हो!
     ?



टिप्पणियाँ

  1. बिल्कुल सच...संवेदनाहीन मनुष्य इंसान कहाँ होता है...बहुत सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं

  2. यथार्थ का चित्रण करती सुन्दर रचना |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बिल्‍कुल सच कहा आपने ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. संवेदना ना होना मृत वर्ग के समान है। उम्दा कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. इंसान होने के लिए,
    जब तक तुम्हारी
    संवेदनाएं जीवित नहीं है,,,,भावपूर्ण लाजबाब पंक्तिया,,,,


    तुम जिन्दा कहाँ हो!recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

    जवाब देंहटाएं
  6. संवेदनाएँ कहीं शून्य हो गयीं हैं, कहीं भीतर ही भीतर घुटी जा रही हैं....~हालात गंभीर हैं!:(
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. सब अपने अपने स्वार्थ में लिप्त हैं .... समवेदनाएं सीमित दायरे में रह गयी हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सिर्फ अपने लिए जीता है इंसान और फिर संवेदनाएं कहाँ रह जाती है? जब अपने घर से लेकर बाहर तक वह सम्वेदना शून्य है तो फिर वह इंसान कहाँ बचा
    --
    रेखा श्रीवास्तव

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