हर वो रास्ता
जिस पर कदम
बढ़ाता हूँ ;
आगे ही वह
बढ़ जाता है !
सुबह से चलकर
सूरज शाम तक थक कर
क्षितिज के पार
ओझल हो जाता है!!
रात के साये में
खिसकते-खिसकते चाँद भी,
यात्रा में असमर्थ हो जाता है!!
यात्रा में असमर्थ हो जाता है!!
पर मेरी आकांक्षा
लक्ष्य-पूर्व विराम
नही लेने देतीं!
और मैं बस चलता ही जाता हूँ !
बहुत सुन्दर....
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