एक मुद्दत से प्यासी थीं नजरें,
रात गुज़र गयी दीदार करते-करते!
लफ्ज़ मचलते ही रहे लबों पे;
टूट गयी सब्र इजहार करते-करते!
शब- ए- फुरकत में सिमट गये लम्हे;
उभरे जो ज़ख्म ऐतबार करते-करते!
रूह से इक आह सी निकल गयी;
टूटा जो ख़्वाब इकरार करते-करते!
एक मुद्दत से प्यासी थीं नजरें,
रात गुज़र गयी दीदार करते-करते!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें