प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
मेरी कश्ती के किनारे,
मेरे जीवन के सहारे;
तन मन मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
मन के नूतन अभिनन्दन !
सुंदर जीवन के नवनंदन,
प्राण धन मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
जीवन के नूतन अभिराम,
मन मंदिर के प्रिय घनश्याम,
प्रेम बंधन मेरे तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
ढूढ़ते जिसे ये सूने नयन,
पुकारे जिसे ये प्यासा मन;
समर्पण मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
सहज भाव लिए उत्कृष्ट रचना,,,,
जवाब देंहटाएंresent post : तड़प,,,
अति सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक नजअरण मेरी नई पोस्ट "पर्यावरण " पर डालें
सरल भाषा में सहज अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
भावो को संजोये रचना......
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