समूह में विलाप करती स्त्रियों का
स्वर भले ही एक है
उनका रोना एक नहीं...
रो रही होती है स्त्री अपनी-अपनी वजह से
सामूहिक बहाने पर....
कि रोना जो उसने बड़े धैर्य से
बचाए रखा, समेटकर रखा अपने तईं...
कितने ही मौकों का, इस मौके के लिए...।
बेमौका नहीं रोती स्त्री....
मौके तलाशकर रोती है
धु्आं हो कि छौंक की तीखी गंध...या स्नानघर का टपकता नल...।
पानियों से बनी है स्त्री
बर्फ हो जाए कि भाप
पानी बना रहता है भीतर
स्त्री पानी का घर है
और घर स्त्री की सीमा....।
स्त्री पानी को बेघर नहीं कर सकती
पानी घर बदलता नहीं....।
विलाप....
नदी का किनारों तक आकर लौट जाना है
तटबंधों पर लगे मेले बांध लेते हैं उसे
याद दिलाते हैं कि-
उसका बहना एक उत्सव है
उसका होना एक मंगल
नदी को नदी में ही रहना है
पानी को घर में रहना है
और घर
बंधा रहता है स्त्री के होने तक...।
घर का आंगन सीमाएं तोड़कर नहीं जाता गली में....
गली नहीं आती कभी पलकों के द्वार हठात खोलकर
आंगन तक...।
घुटन को न कह पाने की घुटन उसका अतिरिक्त हिस्सा है...
स्त्री गली में झांकती है,
गलियां सब आखिरी सिरे पर बन्द हैं....।
....गली की उस ओर से उठ रहा है
स्त्रियों का सामूहिक विलाप....
माया मृग
(यह रचना माया मृग जी द्वारा लिखी गयी है मैं उनकी अनुमति का आभार व्यक्त करता हूँ !)
बेहतरीन रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 30/09/2013 को
जवाब देंहटाएंभारतीय संस्कृति और कमल - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः26 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
बेहतरीन रचना ... बहुत दिनों के बाद इतना शशक्त लेखन पढ़ने को मिला ..
जवाब देंहटाएंआभार ...
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअद्भुत ,सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंकल 03/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हर स्त्री की मनोदशा बयां कर दी आपने
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द सच बोल रहा है
अद्भभुत प्रस्तुति
मायामृग जी की रचनाओं का जबाब नहीं ........
जवाब देंहटाएंपानियों से बनी है स्त्री
जवाब देंहटाएंबर्फ हो जाए कि भाप
पानी बना रहता है भीतर
स्त्री पानी का घर है
और घर स्त्री की सीमा....।
स्त्री पानी को बेघर नहीं कर सकती
पानी घर बदलता नहीं....।
एक एक रचना जैसे मोती ! पढता जा रहा हूँ , पढता जाऊँगा जब तक समय इजाजत देगा