मुझे तुम
रहने दो
यूँ ही मौन !
कितने प्रश्न
हैं भीतर मेरे,
सब तोड़ दिए
वो किये हुए
अनुबंध मेरे तेरे !
किस आधार पर
निराधार करेगा
ये अपराध सारे !
है बेहतर
मेरा मौन ही
रह जाना !
किसको किसने
कबतक किसका
है माना !!
फिर सोंच यह
उठता है मन मेरे ,
किस जीवन में
कितनी हैं
शामें और
कितने है सवेरे !!
मुझे तुम
मुझे तुम
रहने दो
यूँ ही मौन !
कितने प्रश्न
हैं भीतर मेरे,
रहने दो
यूँ ही मौन !
कितने प्रश्न
हैं भीतर मेरे,
मौन सबसे बेहतरीन संवाद है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (19-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 121" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
कभी कभी मौन रहना ही सबसे उचित होता है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही उत्कृष्ट रचना ! अति सुंदर !
जवाब देंहटाएंमन में उठती उठापटक को विश्राम कहां मिलता है ... बस मौन रहना ही उचित होता है ऐसे में ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंjis baat ko kahny sy dard ho. us sy to monn hi bahtar hai............monn apny aap main samvaad hai.........
जवाब देंहटाएंहै बेहतर
जवाब देंहटाएंमेरा मौन ही
रह जाना !
किसको किसने
कबतक किसका
है माना !!
एकदम बढ़िया