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इस धरती की आधी दुनिया

रोटी के
जरा सी
जल जाने भर से
जला दी जाती हैं
स्त्रियाँ।


बेटों के
जन्म न देने भर से
मार दी जाती हैं,
कोख में ही
बेटियाँ  ।।


और वर्जित है
जिन्हें
प्रेम करना  ।।


ये स्त्रियाँ
इस समाज का
आधा हिस्सा हैं,
आधी दुनिया हैं
इस धरती की।।



जिनका  भूगोल तो
बना दिया गया है,
पर गणितीय सिद्धांत
अभी भी
सहूलियत के अनुसार
बदल लेते हैं
ये गणिताचार्य ।।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना रविवार 27 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. गहरी अभिव्यक्ति..... हमारे ही परिवेश का कटु सत्य .....

    जवाब देंहटाएं
  3. ऐसे सच जो दिल दहला दें,
    पर युगों से यही होता आ रहा है . सृष्टि के सबसे श्रेष्ठ और समर्थ मानी जाने वाली जाति की यही असलियत है !

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर...खूबसूरत कथ्य...बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत प्रभावी ... कठोर सत्य ... सदियों से चला आ रहा कडुवा सच ...

    जवाब देंहटाएं
  6. जिनका भूगोल तो
    बना दिया गया है,
    पर गणितीय सिद्धांत
    अभी भी
    सहूलियत के अनुसार
    बदल लेते हैं
    ये गणिताचार्य ।।

    बहुत ही शानदार..स्त्रियों के प्रति किये जाने वाले पितृसत्तात्मक व्यवहार का उत्तम चित्रण।।

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. Truth of our society ,
    Bw to all my seniors here , please have a look on my newly created blog ,, Just want to do something great in hindi and want suggestions from all you respected persons , So this is the link for my first poem in hindi -<a href="http://hindishortstoriesandpoems.blogspot.in/2014/05/manjil-ki-talaash-mein.html>Home</a>

    जवाब देंहटाएं
  9. ये स्त्रियाँ
    इस समाज का
    आधा हिस्सा हैं,
    आधी दुनिया हैं
    इस धरती की।।
    लेकिन स्त्री होने का दर्द झेल रही है आज स्त्री

    जवाब देंहटाएं

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मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!