चिड़ियों ने
छोड़ दिया है,
अपने चूज़ों को चुगाना,
अब वो सिखाती है
चोंच मारकर
दूसरों के दानों को
छीनने की कला।
आज के दौर में
ठीक वैसे ही जरूरी हो गई है,
छीनने की प्रवृत्ति
जैसे है जरूरी जीना।
अब लोगों ने
धूप में अनाज
सुखाना बन्द कर दिया है,
और खेत खलिहानों में भी
छूटे हुए दानों पर भी
होने लगी है कालाबाजारी,
और छीनने की कला
अब अपराध नहीं,
हो गई है पूर्ण न्यायिक और नितान्त ।
छोड़ दिया है,
अपने चूज़ों को चुगाना,
अब वो सिखाती है
चोंच मारकर
दूसरों के दानों को
छीनने की कला।
आज के दौर में
ठीक वैसे ही जरूरी हो गई है,
छीनने की प्रवृत्ति
जैसे है जरूरी जीना।
अब लोगों ने
धूप में अनाज
सुखाना बन्द कर दिया है,
और खेत खलिहानों में भी
छूटे हुए दानों पर भी
होने लगी है कालाबाजारी,
और छीनने की कला
अब अपराध नहीं,
हो गई है पूर्ण न्यायिक और नितान्त ।
छूटे हुए दानों पर भी
जवाब देंहटाएंहोने लगी है कालाबाजारी,
और छीनने की कला
अब अपराध नहीं,
वाह ! सुंदर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST - आँसुओं की कीमत.
अब यही कला बची है !! मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
जवाब देंहटाएंप्रभावी ... प्राकृति सभी में बदलाव लाने लगी है .. इंसान का मुकाबला करने को ...
जवाब देंहटाएंयही सब तो हो रहा है ,आदमी की फ़ितरत बदलती जा रही है .
जवाब देंहटाएं.बहुत सार्थक सोच...एक एक पंक्ति गहन अहसासों से परिपूर्ण और दिल को छू जाती है
जवाब देंहटाएंआग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
शब्दों की मुस्कुराहट पर ...खुशकिस्मत हूँ मैं एक मुलाकात मृदुला प्रधान जी से
आज के दौर में
जवाब देंहटाएंठीक वैसे ही जरूरी हो गई है,
छीनने की प्रवृत्ति
जैसे है जरूरी जीना।
जरुरी भी है इस कला में पारंगत होना क्योंकि सच और ईमानदारी की कोई कद्र नहीं करता ! हक़ आजकल मांगने से नहीं हथियाने से , छीनने से ही तो मिलता है ! सटीक शब्द