मेरी तल्खियाँ इतनी नागवार तो नहीं कि,
तुझे मेरी सूरत से भी चुभन होने लगी ।
मैं तो जिन्दा हूँ तुझे अपना भर मानकर,
तेरे बिन सांसों को भी घुटन होने लगी ।
काश बुझ गयी होती ये तमन्ना-ए-दिल,
हर इक आरज़ू को भी जलन होने लगी ।
गजल कोई उपजे तो भला किस कदर,
जब लफ्ज-लफ्ज को भी थकन होने लगी ।
तुझे मेरी सूरत से भी चुभन होने लगी ।
मैं तो जिन्दा हूँ तुझे अपना भर मानकर,
तेरे बिन सांसों को भी घुटन होने लगी ।
काश बुझ गयी होती ये तमन्ना-ए-दिल,
हर इक आरज़ू को भी जलन होने लगी ।
गजल कोई उपजे तो भला किस कदर,
जब लफ्ज-लफ्ज को भी थकन होने लगी ।
बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
सुन्दर गजल...
जवाब देंहटाएं:-)
वाह...
जवाब देंहटाएंगजल कोई उपजे तो भला किस कदर,
जब लफ्ज-लफ्ज को भी थकन होने लगी ।
बढ़िया ग़ज़ल..
अनु
behtreen gazal...
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब ह्सेर हैं सभी ... और आखरी वाला तो सुभान अल्ला ..
जवाब देंहटाएंbadhiya
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