मुझे भय है
मरते हुए आदमी को
बचा रहने का,
मरा हुआ आदमी
नहीं रखा जाता देर तक ।
लेकिन जिन्दगी की तलाश में,
मरता है दिनों दिन।
दुनिया के रहने से
ज्यादा जरूरी है
आदमी का रहना।
क्योंकि लाशों से और
लाशों में संवेदनाएँ नहीं होती हैं।
मरते हुए आदमी को
बचा रहने का,
मरा हुआ आदमी
नहीं रखा जाता देर तक ।
लेकिन जिन्दगी की तलाश में,
मरता है दिनों दिन।
दुनिया के रहने से
ज्यादा जरूरी है
आदमी का रहना।
क्योंकि लाशों से और
लाशों में संवेदनाएँ नहीं होती हैं।
:-(
जवाब देंहटाएंमार्मिक!
अनु
bahut hi marmik..............
जवाब देंहटाएंलाशों में संवेदनाएँ कहाँ होती हैं...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - फागुन की शाम.
बहुत प्रभावी ... संवेदनाएं क्या सच मे हैं आज ज़िंदा ...?
जवाब देंहटाएंदुनिया के रहने से
जवाब देंहटाएंज्यादा जरूरी है
आदमी का रहना।
क्योंकि लाशों से और
लाशों में संवेदनाएँ नहीं होती हैं।
बहुत ही गंभीर रचना