तुमने लिखा
पानी,
कहीं जलजला था,
पर
आदमी की आँखों का
पानी मर चुका था।
तुमने लिखी
पीड़ा,
कराहों और चीख़ों से
गूँजते रहे सन्नाटे।
तुम जब लिखने लगे
भूख;
जबरन रोकना पड़ा मुझे
तुम्हारा हाथ
बर्दाश्त के बाहर थी
उस नवजात की चीख़
उसकी माँ को अभी
मिटानी थी
बहशियों की भूख।
पानी,
कहीं जलजला था,
पर
आदमी की आँखों का
पानी मर चुका था।
तुमने लिखी
पीड़ा,
कराहों और चीख़ों से
गूँजते रहे सन्नाटे।
तुम जब लिखने लगे
भूख;
जबरन रोकना पड़ा मुझे
तुम्हारा हाथ
बर्दाश्त के बाहर थी
उस नवजात की चीख़
उसकी माँ को अभी
मिटानी थी
बहशियों की भूख।
बहुत कम लोग पहुँच पाएंगे गहराई तक...
जवाब देंहटाएंजब दुनियां के लिए भूख लिखी गयी
तो बहुत सी मजबूरियां और शरहदें तोहफे में मिली
रंगरूट
वाह...सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंkhubsurat abhivaykti....
जवाब देंहटाएंदिखने /लिखने और होने के मध्य संवेदनाओं को झकझोरती है रचना !
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंगहरे अर्थ संजोये सुंदर प्रस्तुति।।
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है.
जवाब देंहटाएंBehad marmsparshi...... Kam shabdo me jhakjhor diya...sarthak abhivyati
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
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