तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक
हमको हमारा ये चराग मुबारक।
तुम क्या मुकम्मल करोगे मसलों को,
तुम्हें ही तुम्हारा जवाब मुबारक।
हो सकते थे और बेहतर हालात,
रख लो, तुम्हें तुम्हारा हिसाब मुबारक ।
सूरत बदलने से नहीं बदलती सीरत,
तुमको ये तुम्हारा नया हिजाब मुबारक।
खुद ही खुद तुम खुदा बन बैठे हो
तुम्हें यह तुम्हारा खिताब मुबारक।
तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक
हमको हमारा ये चराग मुबारक।
हमको हमारा ये चराग मुबारक।
तुम क्या मुकम्मल करोगे मसलों को,
तुम्हें ही तुम्हारा जवाब मुबारक।
हो सकते थे और बेहतर हालात,
रख लो, तुम्हें तुम्हारा हिसाब मुबारक ।
सूरत बदलने से नहीं बदलती सीरत,
तुमको ये तुम्हारा नया हिजाब मुबारक।
खुद ही खुद तुम खुदा बन बैठे हो
तुम्हें यह तुम्हारा खिताब मुबारक।
तुम्हें तुम्हारा आफताब मुबारक
हमको हमारा ये चराग मुबारक।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-11-2018) को "परिभाषायें बदल देनी चाहियें" (चर्चा अंक-3145) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंRation Card
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएं