मुझे मालूम है
नहीं फर्क पड़ता तुम्हें
मैं तुम्हारे साथ हूं
या कि गुजर गया हूं इस जमाने से।
अक्सर तुम मुझे मिल जाती हो मेरी नींदों के ख्वाबों में,
क्या करूं मैं तन्हा रह कर भी तन्हा नहीं रह पाता हूं,
तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षण मुझे अकेला रहने ही नहीं देते।
तुम्हें आदत हो गई होगी
अकेले रहने की
क्योंकि
तुमने कभी अपने आप को
हम होने ही नहीं दिया।
शायद हम होने की प्रक्रिया
इतनी आसान नहीं होती,
हम होने के लिए
मैं के वजूद को
मिटाना पड़ता है।
जैसे कि तुम जी रहे हो मुझ में और मैं जी रहा हूं तुम में।
नहीं फर्क पड़ता तुम्हें
मैं तुम्हारे साथ हूं
या कि गुजर गया हूं इस जमाने से।
अक्सर तुम मुझे मिल जाती हो मेरी नींदों के ख्वाबों में,
क्या करूं मैं तन्हा रह कर भी तन्हा नहीं रह पाता हूं,
तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षण मुझे अकेला रहने ही नहीं देते।
तुम्हें आदत हो गई होगी
अकेले रहने की
क्योंकि
तुमने कभी अपने आप को
हम होने ही नहीं दिया।
शायद हम होने की प्रक्रिया
इतनी आसान नहीं होती,
हम होने के लिए
मैं के वजूद को
मिटाना पड़ता है।
जैसे कि तुम जी रहे हो मुझ में और मैं जी रहा हूं तुम में।
अंतिम पंक्ति में जान झोंक दी है आपने.
जवाब देंहटाएंउम्दा .
आत्मसात
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंRation Card
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।