पहाड़ों पर
रखा सूरज,
या फुनगी पर लटका चांद,
न जाने क्यों लगता है उदास,
शायद अब
चिड़ियों की चहचाहट
और नदियों
का कलरव बंद हो गया है।
अब रातों में
नहीं जगमगाता है
तारों का शामियाना,
अब तो बस
आधुनिकता के धुए ने
ढक रखा है
पूरा आसमान।
शायद अब
बचे रहेंगे केवल
दो ही रंग
काला और लाल।
कई वर्षों से
नहीं दिखा है
इंद्रधनुष,
अब यह नीली धरती
हो रही है फिर से लाल ।।
रखा सूरज,
या फुनगी पर लटका चांद,
न जाने क्यों लगता है उदास,
शायद अब
चिड़ियों की चहचाहट
और नदियों
का कलरव बंद हो गया है।
अब रातों में
नहीं जगमगाता है
तारों का शामियाना,
अब तो बस
आधुनिकता के धुए ने
ढक रखा है
पूरा आसमान।
शायद अब
बचे रहेंगे केवल
दो ही रंग
काला और लाल।
कई वर्षों से
नहीं दिखा है
इंद्रधनुष,
अब यह नीली धरती
हो रही है फिर से लाल ।।
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