सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ऑक्टोपस


ऑक्टोपस;
सागर की तलहटी में,
या समाज की मुंडेर पर,
लीलते जलीय तुच्छ जन्तु
या जीते-जागते मानव का
पूरा-पूरा शरीर!


चूंस कर
उनकी रगों की रंगत,
व् निचोड़ कर
उसका मकरंद;

हमारे बीच,
हममें से ही
जाने कितने ऑक्टोपस
छिपे हुए
लपेटे चोला मानव का;

पहचानना होगा,
अंतर जानना होगा ,
हमें ऑक्टोपस से
मानव का !

टिप्पणियाँ

  1. कितना ही प्रयास कर लें पर पहचानना बहुत मुश्किल होता है औक्टोपस का । सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. ऑक्टोपस हैं हर जगह, चूस रहें हैं खून।
    मानव बीच हरवक्त छुपे, अक्टूबर या जून ।।

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह....
    बेहतरीन....
    आठ भुजाओं वाले मनुष्य से बचना होगा...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. ओक्टोपस से आदमी की तुलना बहुत अच्छी लगी |बढ़िया रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. अस्थाना सर ,
    सादर प्रणाम |
    अपने बीच छुपे आक्टोपस को पहचानना तो बहुत ही जरूरी हैं |सार्थक लेखन |

    जवाब देंहटाएं
  6. पहचानना होगा,
    अंतर जानना होगा ,
    हमें ऑक्टोपस से
    मानव का !
    बिल्‍कुल सही ...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ क...

मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।