आज
सूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
दूर कर
निराशा की तमीशा;
उपजाओ आशा!
कैसी चिंता,
बीते कल की;
बीत गया वह क्षण;
गुजर गया तम विवर !
आज
सूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
हो चिन्तन;
न हो चिंता जीवन की!
तज दो निज व्यथा का व्योमोहन!
धर दो पग अब
कर्म पथ पर!
आज
सूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
व्यर्थ भ्रम उर में भर,
विचलित करते
तुम्हे शून्य- शिखर!
होकर उर्जस्वित,
प्रत्यक्ष का वरण कर
आज
सूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
आज
जवाब देंहटाएंसूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
आशा और उमंग बनी रहना चाहिये.
रामारम.
आज
जवाब देंहटाएंसूरज फिर आया
तुम्हारे दरवाजे पर;
एक नया सवेरा लेकर!
बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति,,,
Recent post: एक हमसफर चाहिए.
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna...........
जवाब देंहटाएंutam-**
जवाब देंहटाएंनया सवेरा... नयी आशाएं!
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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