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मेरी पीड़ा !

मेरी  पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो ,
मेरे जीवन की
मेरी ये घड़ियाँ
मुझको ही
जी जाने दो;

उन स्वप्निल
आशाओं के
बिखरन की पीड़ा,
तुम क्या जानोगे?
मेरे उस सच के
सच को
तुम क्या मानोगे ?

मान भी जाओ,
पर
मेरा  ही रह जाने दो!
मेरी  पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो !

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर है .धन्यवाद
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे उस सच के
    सच को
    तुम क्या मानोगे ?
    मेरी पीड़ा;
    मुझको ही
    पी जाने दो !

    बहुत उम्दा,सुंदर भावपूर्ण पंक्तिया ,,,

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

    जवाब देंहटाएं
  4. सच ...सबकी अपनी पीडाएं हैं अपने दुःख हैं.....

    बहुत कोमल रचना..
    अनु

    जवाब देंहटाएं

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मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!