सत्ता की सनक, या सनकी शासक; बिन पेंदी लोटा या बिन प्रेस प्रकाशक। कभी राज्य कभी प्रांत, बदल कर नाम; बन जाता है हर काम। हवा को वायु, वय को आयु; कहने से क्या, मृत्यु टल जाएगी? बेघर को घर और भूखे को रोटी मिल जाएगी। जनता का 'कर' पूँजीपति के कर में देकर, देखो कैसे चलती है सरकार। नाम है सरकार का, काम है व्यभिचार का; लूट खाएं मिलकर ठेकेदार। काम वाले सब खाली, घर बैठ बजाएं ताली। भुखमरी,बीमारी सब है बरकरार। नवयुवक भटक रहा राहों में, जनता मर रही कराहों में; देख रहे हैं बनकर लाचार।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !