मोहब्बतें दिलों में इस कदर पलें,
बाप की अंगुली थाम बचपन चले।
क्या गम है कि पास में दो निवाले,
रोटी दो जून की सबको ही मिले।
करे न कोई किसी पे जुल्मो-सितम,
चरागे -नफरत न अब दिल में जलें।
कुछ न मिलेगा मजहबी रंजिशों से,
सभी कौम चैनो -अमन से रहलें।
सुपुर्द-ए -खाक होना है एक दिन,
बाप की अंगुली थाम बचपन चले।
क्या गम है कि पास में दो निवाले,
रोटी दो जून की सबको ही मिले।
करे न कोई किसी पे जुल्मो-सितम,
चरागे -नफरत न अब दिल में जलें।
कुछ न मिलेगा मजहबी रंजिशों से,
सभी कौम चैनो -अमन से रहलें।
सुपुर्द-ए -खाक होना है एक दिन,
दुनियादारी में क्यों किसी को छले।
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